कालजयी रचनाओं का सन्सार तुम्हारा क्या जानू ,रह गए हो शब्दों तक सीमित,बिन कृतियों के मै क्या मानू,जिये तो तुम घृत पीकर प्यारे,गरल को लिखना नही है काफी,कटे पडे उन पैरों के क्या तुम,कभी बने हो बैशाखी? बैशाखी।।।।