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तुम्हारे ख़त, कई दफ़ा मैं पढ़ती रहती हूँ, बीती याद

तुम्हारे ख़त, कई दफ़ा मैं पढ़ती रहती हूँ,
बीती यादों की ख़ुशबू में उड़ती रहती हूँ।

कितने उम्दा थे वो शिकवे-शिकायत भी,
पुराने लतीफ़ों पर ही, मैं हँसती रहती हूँ।

भूली नहीं जिसे,  उसे याद करूँ मैं कैसे? 
दिल में बसा उम्मीद, मैं चलती रहती हूँ। 

क़ाबिल नहीं तो ज़िंदगी में शामिल नहीं, 
बात दुनियादारी की, मैं सुनती रहती हूँ। 

कोई क्यों रखे याद,तुम ख़ास कहाँ 'धुन', 
दिली ख़ुशी के किस्से मैं गढ़ती रहती हूँ।  🎀 Challenge-457 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 

🎀 रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। 

🎀 अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।
तुम्हारे ख़त, कई दफ़ा मैं पढ़ती रहती हूँ,
बीती यादों की ख़ुशबू में उड़ती रहती हूँ।

कितने उम्दा थे वो शिकवे-शिकायत भी,
पुराने लतीफ़ों पर ही, मैं हँसती रहती हूँ।

भूली नहीं जिसे,  उसे याद करूँ मैं कैसे? 
दिल में बसा उम्मीद, मैं चलती रहती हूँ। 

क़ाबिल नहीं तो ज़िंदगी में शामिल नहीं, 
बात दुनियादारी की, मैं सुनती रहती हूँ। 

कोई क्यों रखे याद,तुम ख़ास कहाँ 'धुन', 
दिली ख़ुशी के किस्से मैं गढ़ती रहती हूँ।  🎀 Challenge-457 #collabwithकोराकाग़ज़

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