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तुम कौन हो चले आते हो झांकने मेरे मन आँगन में ज़मी

तुम कौन हो
चले आते हो झांकने
मेरे मन आँगन में ज़मी
यादों को!
चले आते हो उद्वेलित करने
मेरे अंतर्द्वंद को,
और मेरे विगत को मेरे
सामने खड़ा कर,
फिर, मुझे छोड जाते हो
मेरी तन्हाइयों और
मेरी मायूसियों में
भटकता छोडकर... 
और तन्हा और अकेला!!!!

©हिमांशु Kulshreshtha कौन हो तुम
तुम कौन हो
चले आते हो झांकने
मेरे मन आँगन में ज़मी
यादों को!
चले आते हो उद्वेलित करने
मेरे अंतर्द्वंद को,
और मेरे विगत को मेरे
सामने खड़ा कर,
फिर, मुझे छोड जाते हो
मेरी तन्हाइयों और
मेरी मायूसियों में
भटकता छोडकर... 
और तन्हा और अकेला!!!!

©हिमांशु Kulshreshtha कौन हो तुम