कुष्मांडा (चतुर्थ दिवस) मत्त सवैया सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च । दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे ॥ मन था चक्र अदाहत में फंसा माँ आ आपने छुड़ाया श्रृष्टि न थी जब अस्तित्व में आ आपने ब्रह्माण्ड बनाया | हे आदि शक्ति ले सस्मित मुस्कान सूर्य लोक में राजती सुर्यसम प्रभा कांति लिए, लिए कमंडल पुष्प धनु बासती | चक्र गदा सिद्धि माला अमृतकलश ले आ अष्टभुज धारी कुष्मांडा-बलि चढ़े, कीर्ति यश दे माँ, जिसकी सिंह सवारी | कुष्मांडा