रात-दिन जी तोड़ मेहनत करता रहा, परिश्रम की भट्टी में हर पल तपता रहा, तुम्हारा भविष्य सुनहरा बनाने के लिए , सोने से कुंदन में परिवर्तित होता रहा। जिम्मेदारी के नाम पर छलता रहा , कोल्हू के बैल की तरह चलता रहा, कभी तुम्हारी कभी अपने बच्चों की, सबकी ख्वाहिशें मैं पूरी करता रहा। जैसा तुम बोली मैं वैसा ही करता रहा , अपनी दिल-ओ-जां तुम पे लुटाता रहा, एक बार भी मैने पलट कर नहीं देखा , जब चला गया सब तो हाथ मलता रहा। कवि सुमित मानधना 'गौरव' ©Sumit Mandhana 'Gaurav' Surat #Twowords #sumitmandhana #sumitgaurav #sumitkikalamse #LifeStory #ownstory #mylife #SAD #sadquotes #BreakUp