#OpenPoetry #संघर्ष... यही एक शब्द हैं जो इसकी परिभाषा बताता हैं, मेहनत का काम ही संघर्ष का निष्कर्ष बताता हैं... इंसान के जीवन में तो बस खोना और पाना हैं, संघर्ष कर के अपने ही पसीने से नहाना हैं... मेरे दिल की आरजू और दिल का हर्ष क्या हैं, मंज़िल मिल गई और पुछता हूँ संघर्ष क्या हैं... इसी ने पहाड़ में एक नया सिगाफ़(सुराख)कर डाला, इसी ने रात के चाँद को दिन का आफ़ताब कर डाला... यही तो था कि जिसने धारा के विपरीत तैर के दिखलाया, यही तो था कि जिसने शेर को भी घेर के दिखलाया... अगर ये राह हैं,तो अपना फ़िर उत्कर्ष क्या हैं, मंज़िल मिल गई और पुछता हूँ संघर्ष क्या हैं... -Deepak mstbaji... #OpenPoetry