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घूंघट में स्त्री (चिंतन) वर्तमान में हम 21वीं सदी

घूंघट में स्त्री (चिंतन) वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं परंतु घूंघट में स्त्री विषय पर चिंतन आज भी हो रहा है या विषय इस बात को दर्शाता है कि हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच अभी भी विद्यमान है एक स्त्री को लोग आज भी घूंघट में ही रखने में प्रयासरत है हालांकि सभी की सोच ऐसी नहीं है बहुत से लोग हैं जो स्त्री और पुरुष को समानता की नजर से देखते हैं और समानता देने का प्रयास भी करते हैं।
आज भी समाज में बहुतायत से घूंघट में रहने वाली स्त्री को ही सामाजिक संस्कारों से परिपूर्ण और संस्कृति को बचाने वाली माना जाता है जो स्त्री घूंघट करती है वही दूसरों का सम्मान कर सकती है ऐसा दकियानूसी सोच रखने वालों का विचार होता है और ऐसे लोग इसी परंपरा को आगे बढ़ाना अपना कर्तव्य समझते हैं और स्त्रियों पर अपना एकाधिकार बनाए रखना चाहते हैं।
समाज का एक वर्ग आज भी स्त्रियों को  डरी सहमी हुई ही देखना चाहता है जिस पर वह अपना एकछत्र राज कर सके उनकी नजरों में स्त्रियों का ऊपर उठना उनका अपमान है और वह इस को बचाने के लिए इस स्त्रियों को आज भी घूंघट में ही देखना चाहते हैं।
ऐसा नहीं है कि समाज में सभी पुरुषों की सोच ऐसी है परंतु ऐसी सोच रखने वालों की कमी भी नहीं है इसलिए पुरुषों को अपनी सोच बदलने के साथ-साथ इस परंपरा को तोड़ने के लिए स्त्रियों को स्वयं ही आगे आना होगा परंतु बहुत सी स्त्रियाँ स्वयं ही इस परंपरा को निभाना अपना कर्तव्य समझती हैं इसलिए यह एक चिंतन का विषय आज भी बना हुआ है।


#घूंघटमेंस्त्री (चिंतन)
#कोराकाग़ज़
घूंघट में स्त्री (चिंतन) वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं परंतु घूंघट में स्त्री विषय पर चिंतन आज भी हो रहा है या विषय इस बात को दर्शाता है कि हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच अभी भी विद्यमान है एक स्त्री को लोग आज भी घूंघट में ही रखने में प्रयासरत है हालांकि सभी की सोच ऐसी नहीं है बहुत से लोग हैं जो स्त्री और पुरुष को समानता की नजर से देखते हैं और समानता देने का प्रयास भी करते हैं।
आज भी समाज में बहुतायत से घूंघट में रहने वाली स्त्री को ही सामाजिक संस्कारों से परिपूर्ण और संस्कृति को बचाने वाली माना जाता है जो स्त्री घूंघट करती है वही दूसरों का सम्मान कर सकती है ऐसा दकियानूसी सोच रखने वालों का विचार होता है और ऐसे लोग इसी परंपरा को आगे बढ़ाना अपना कर्तव्य समझते हैं और स्त्रियों पर अपना एकाधिकार बनाए रखना चाहते हैं।
समाज का एक वर्ग आज भी स्त्रियों को  डरी सहमी हुई ही देखना चाहता है जिस पर वह अपना एकछत्र राज कर सके उनकी नजरों में स्त्रियों का ऊपर उठना उनका अपमान है और वह इस को बचाने के लिए इस स्त्रियों को आज भी घूंघट में ही देखना चाहते हैं।
ऐसा नहीं है कि समाज में सभी पुरुषों की सोच ऐसी है परंतु ऐसी सोच रखने वालों की कमी भी नहीं है इसलिए पुरुषों को अपनी सोच बदलने के साथ-साथ इस परंपरा को तोड़ने के लिए स्त्रियों को स्वयं ही आगे आना होगा परंतु बहुत सी स्त्रियाँ स्वयं ही इस परंपरा को निभाना अपना कर्तव्य समझती हैं इसलिए यह एक चिंतन का विषय आज भी बना हुआ है।


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#कोराकाग़ज़