मैं बंसत लिखती हूँ, वो सुखे पत्तों की बात करता है, मैं ख्वाब देखती हूँ, वो हकीकत की आस रखता है, मैं आसमान देखती हूँ, वो धरातल पर नजरें रखता है, मैं हमारी गुफ्तगू करती हूँ, वो जमाने भर की गुंजाइश रखता है ©Mona Pareek #बंसत