White फिर मन आषाढ़ हो चला तैरती रुई धुनी हुई। बंद हवा लिखती है देह भर पसीना दीवारों में कसी हुई। माथे पर हाथ रखे बैठी है तबियत होकर छुईमुई। चप्पा-चप्पा खड़ी उमस परत-दर-परत चुनी हुई। बूँद-बूँद गल कर हम भीड़ों में बहते हैं हिम-नदी सरीखे। हम खंडित इंद्रधनु उठाए इस्पाती भाषा में चीख़े। बादामी कानों तक आकर सुनो बात अनसुनी हुई। ©"SILENT" #Hindi pantiya#Nîkîtã Guptā