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रात लोगों को अंधेरे का पैगाम लगती है मुझको तो लगती

रात लोगों को अंधेरे का पैगाम लगती है
मुझको तो लगती है आगाज़ नए सवेरे का
उजाले से पहले यादों के प्यारे घेरे का
सोचता हूं इस रात में समा जाऊं
कुछ अपनी सुनूं कुछ इसकी ख़ामोशी सुनता जाऊं
तारों की छांव में बैठकर आने वाली सुबह की रूपरेखा बनाऊं
कुछ कमियां निकालू अपनी 
कुछ सवारने की ख़ुद को जुगत बनाऊं
मैं इस रात को आने वाले दिन की नीव बनाऊं

©Dr  Supreet Singh
  #रात_की_बात