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शब्दों की सरिता बह रही है,कवि के रग रग में। मंजिल

शब्दों की सरिता बह रही है,कवि के रग रग में।
मंजिल की आश जगी है,बटोही के पग पग में।
विचारों के पंख लगे है,उड़ते पंछी संग संग में।
आसमां छूने के हौसले होते नहीं,हरेक खग में।
JP lodhi 06/04/2022

©J P Lodhi.
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