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क्या-क्या खत्म करूँ मैं अपनी जिंदगी से, तुम्हें भु

क्या-क्या खत्म करूँ मैं अपनी जिंदगी से,
तुम्हें भुलाने के लिए,
ये सबेरा, ये दोपहर, ये शाम या ये रात, 
जिसकी हर शुरुआत मुझे तुम्हारी याद दिलाती है...
या ये धरती, आसमान और यहाँ मौजूद हर वादियाँ, 
जहाँ तुम्हारी हँसी की किलकारियाँ,
आज भी ज़िन्दा हैं...
या बदल डालूँ मैं, 
ये साँसें, ये धड़कने, ये दुनिया, 
जिसके हर अक्स में तुम इस तरह शामिल हो, 
कि बिना मरे, 
खुद को,
कैसे निकालूँ इन सबसे बाहर...
क्या-क्या बदलूं मैं ?
तुम्हीं बताओ...
ये आँखें जिसमें तुम्हारी तस्वीर आज भी मौजूद है, 
या ये काँधे जिसपे तुम्हारे रखे सिर की राहत आज भी मौजूद है, 
या बदल डालूँ ये जिस्म,
जिसके रोम-रोम में तुम्हारा एहसास,
इस कदर शामिल है, 
कि बिना मरे,
मेरी रूह की,
बेचैनी खत्म कहाँ हो पाएगी...
क्या-क्या बदलूं और क्या-क्या खत्म करूँ मैं?
तुम्हीं बताओ...

©Chandan Bharati
  help me out to find its *TITLE*
.
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Inspired from a web series...
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क्या-क्या खत्म करूँ मैं अपनी जिंदगी से,
तुम्हें भुलाने के लिए,
ये सबेरा, ये दोपहर, ये शाम या ये रात, 
जिसकी हर शुरुआत मुझे तुम्हारी याद दिलाती है...
या ये धरती, आसमान और यहाँ मौजूद हर वादियाँ, 
जहाँ तुम्हारी हँसी की किलकारियाँ,
आज भी ज़िन्दा हैं...
या बदल डालूँ मैं, 
ये साँसें, ये धड़कने, ये दुनिया, 
जिसके हर अक्स में तुम इस तरह शामिल हो, 
कि बिना मरे, 
खुद को,
कैसे निकालूँ इन सबसे बाहर...
क्या-क्या बदलूं मैं ?
तुम्हीं बताओ...
ये आँखें जिसमें तुम्हारी तस्वीर आज भी मौजूद है, 
या ये काँधे जिसपे तुम्हारे रखे सिर की राहत आज भी मौजूद है, 
या बदल डालूँ ये जिस्म,
जिसके रोम-रोम में तुम्हारा एहसास,
इस कदर शामिल है, 
कि बिना मरे,
मेरी रूह की,
बेचैनी खत्म कहाँ हो पाएगी...
क्या-क्या बदलूं और क्या-क्या खत्म करूँ मैं?
तुम्हीं बताओ...

©Chandan Bharati
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