ये सितम भी ख़ूब है, कल्ब-ए-कहर भी ख़ूब है, पानी भी न माँगे है उसका ज़हर भी ख़ूब है। दिल के ज़ख्मों की क़ीमत भी लगा देतें हैं, ये ज़ख्म आँखों को न बूझे ये मेहर भी ख़ूब है। क्या छुपाता ये हँसता चेहरा होंठों की खिलखिलाहट, रात का हुड़दंग छुपाती ये सहर भी ख़ूब है। जल जल कर धुंआ होता राख़ होता है जिगर, प्यास नहीं मिटाती कोई ये बहर भी ख़ूब है। ज़िन्दगी जीने की फ़िज़ूल बातें न करना, इक़ इक़ लम्हा अर्सा सा लगता ये पहर भी ख़ूब है। बरसातों के दीवानों को आँखों का पानी न लुभाए है, दोहरी फ़ितरत के लिबास में उसका शहर भी ख़ूब है।— % & ♥️ Challenge-847 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।