चलो, आज कुछ पुरुषों पर भी लिखा जाए... बहुत हुई स्त्रियों की बातें, चलो, आज पुरुषों को समझा जाए। उनके हृदय को देखा जाए, उनके मस्तिष्क में चल रहे समुद्र मंथन को समझा जाए। जो वो कह नहीं पाते, उन्हें सुना जाए, उनका भी संघर्ष जाना जाए। अरे! हम तो भूल ही गए थे कि वो एक "पुरुष" है... भला एक पुरुष कैसे रो सकता है? चलो, आज इस प्रश्न का उत्तर खोजा जाए। पुरुष — बाहर से कठोर है तो क्या? क्या उसके पास हृदय नहीं है? या पत्थर का है हृदय उनका? पत्थर का हृदय है, या इस समाज ने उसे बना दिया है ऐसा चलो, आज इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजे जाएं, चलो, क्यों न उनकी कहानी उन्हीं की मुंहजुबानी सुनी जाए? देखा है मैंने अपने पापा को, दादी की मौत पर अकेले खड़े हुए, वो रोए नहीं, एक आँसू तक ना गिरा उनकी आँखों से, शायद वो "मर्द को दर्द नहीं होता" पंक्ति को सच मान चुके थे। देखा है मैंने अपने कठोर भाई को, जीवन की राहों में असफलताओं से घिरते हुए, पर कभी उसने माँ के सामने अपने माथे पर शिकंज की एक भी लकीर बनने दी हो? देखा है मैंने अपने यार को, हजार तकलीफों के बाद भी मुस्कुराते हुए। रोते तो वो भी होंगे, पर शायद घर के किसी कोने में, जहाँ उन्हें कोई न देख सके, जहाँ कोई उनकी बहती मोतियों का मज़ाक ना उड़ा सके, या फिर काली अंधेरी रातों में, जब सब कुछ शांत सा हो… मानो, ऐसा लगता है आँसुओं पर उनका कोई अधिकार नहीं। अज़ाब तो है उनके जीवन में भी, पर शायद उन्हें समझने वाला कोई नहीं… चलो, आज किसी का अज़ाब बाँटा जाए, चलो, आज एक पुरुष को समझा जाए! ©Manisha "पुरुषों की कहानी उन्हीं की जबानी!" poetry hindi poetry on life poetry lovers love poetry in hindi poetry quotes