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पापा (पर कुछ पंक्तियां) मैंने आज लिखने के लिए कलम

पापा (पर कुछ पंक्तियां)

मैंने आज लिखने के लिए कलम उठाया 
पर क्या लिखूं  मैं ये समझ ना आया
मैंने सोचा था कुछ शब्द लिखूंगी पापा पर
पर कोई उचित शब्द मस्तिष्क में ही ना आया।

कितनी देर पकड़ कर बैठी रही कलम मैं
पर कुछ लिखने में ना आया 
हर दृश्य आंखों के सामने घूम गया अबतक का
और ये बहुत ही लंबा दृश्य बन गया
जो की कविता नहीं कहानी बन गया।

बहुत ही सोचा फिर एक निश्चय किया मैंने
पापा को "धन्यवाद्" बोलूंगी
मां-पापा का मस्तिष्क कभी नीचे ना होने दूंगी
जो उन्होंने सपने सज़ा रखे हैं वो सच कर के रहूंगी।

©Ritika pandey Happy Father's Day
#thank_you_papa_for_everything

#FathersDay
पापा (पर कुछ पंक्तियां)

मैंने आज लिखने के लिए कलम उठाया 
पर क्या लिखूं  मैं ये समझ ना आया
मैंने सोचा था कुछ शब्द लिखूंगी पापा पर
पर कोई उचित शब्द मस्तिष्क में ही ना आया।

कितनी देर पकड़ कर बैठी रही कलम मैं
पर कुछ लिखने में ना आया 
हर दृश्य आंखों के सामने घूम गया अबतक का
और ये बहुत ही लंबा दृश्य बन गया
जो की कविता नहीं कहानी बन गया।

बहुत ही सोचा फिर एक निश्चय किया मैंने
पापा को "धन्यवाद्" बोलूंगी
मां-पापा का मस्तिष्क कभी नीचे ना होने दूंगी
जो उन्होंने सपने सज़ा रखे हैं वो सच कर के रहूंगी।

©Ritika pandey Happy Father's Day
#thank_you_papa_for_everything

#FathersDay