रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है तम से क्या घबराना सूरज रोज निकलता है मत दो तुम आवाज भीड़ के कान नहीं होते क्योंकि भीड़ में सबके सब इंसान नहीं होते मोती पानी के लालच में नीचे मत उतरो एक गीत से पीराओं का पर्वत गलता है रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है तम से क्या घबराना सूरज रोज निकलता है ©Sanjeev Rana "Shivansh" एक महान कवि की चंद पंक्तियां #stay_home_stay_safe