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रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है तम से क्या घबरान

रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है
तम से क्या घबराना 
सूरज रोज निकलता है
मत दो तुम आवाज
भीड़ के कान नहीं होते
क्योंकि भीड़ में सबके सब इंसान नहीं होते
मोती पानी के लालच में 
नीचे मत उतरो
एक गीत से पीराओं का 
पर्वत गलता है
रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है
तम से क्या घबराना 
सूरज रोज निकलता है

©Sanjeev Rana "Shivansh" एक महान कवि की चंद पंक्तियां

#stay_home_stay_safe
रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है
तम से क्या घबराना 
सूरज रोज निकलता है
मत दो तुम आवाज
भीड़ के कान नहीं होते
क्योंकि भीड़ में सबके सब इंसान नहीं होते
मोती पानी के लालच में 
नीचे मत उतरो
एक गीत से पीराओं का 
पर्वत गलता है
रात रात भर जब आशा का दीप मचलता है
तम से क्या घबराना 
सूरज रोज निकलता है

©Sanjeev Rana "Shivansh" एक महान कवि की चंद पंक्तियां

#stay_home_stay_safe

एक महान कवि की चंद पंक्तियां #stay_home_stay_safe