अजनबी के जैसे मिले हम दोनों और उल्फत हो गई, चाहत थी बस दोस्ती की और सच्ची मोहब्बत हो गई। दिल चाहने लगा उनको बिना हमारे दिल की मर्जी के, उनको चाहना हमारे नादान दिल की कमजोरी हो गई। वह समझ कर भी समझते नहीं है हमारी खामोशी को, उनसे इकरार-ए-मोहब्बत ना कर पाना मजबूरी हो गई। उनको देख सांँसे थमने लगती हैं धड़कनें बढ़ जाती हैं, उनको देखकर भी नजरअंदाज करना जैसे खूबी हो गई। मीठा मीठा सा प्यार का दर्द रहने लगा है मेरे इस दिल में, दर्द होता है बिन आवाज दर्द की गवाही अनसुनी हो गई। ♥️ Challenge-542 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।