"चार दिन" याद में गुज़ार दी, ज़िन्दगी उधार की नाउम्मीद उम्मीद को, ये किसने इत्तेला है दी आ रहा है फिर कोई, गिराने फिर से बिजलियां बची-खुची सी लाश में, फूंकने को ज़िन्दगी या बच रही सी ज़िन्दगी को, नये सिरे से मारने मैं तो लग गया हूँ बस, खुद को अब संवारने मारने भी आयेगा, तो आयेगा तो सामने चाहतें तेरी मगर, पूरी कैसे हों भला जो तू हो सामने अगर, कौन खुद न जाए मर जल्दी कर बस जल्दी कर, यूँ भी हम रहे थे मर मौत हो अब रस-भरी, सामने हो तू खड़ी मरने में मज़ा ही क्या, मरे कोई जो यार बिन फ़िक्र अब तो एक है, कटेंगे कैसे चार दिन। #NaveenMahajan #hearts #चार_दिन