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भगवान राम और माता सीता का प्रेम भले कोई न समझ पाएं

भगवान राम और माता सीता का प्रेम भले कोई न समझ पाएं।
पर सुख और दुःख दोनों ने मिल कर सहा है, अपनी प्रजा के लिए त्याग किया है। क्योंकि उन्होंने अपनी प्रजा उनकी संतान ही माना हैं। और संतान के लिए सब कुछ त्याग देते है। उन्होंने वहीं किया। राम के ह्रदय की बात सीता जानतीं थी। तो राम भी सीता के ह्रदय की बात को जानते थे। अपने पति को असमंज में न रहें कोई उन्हे गलत न कहे इसलिए सहर्ष ही वनवास स्वीकार किया। जब ऋषी वाल्मिकी के आश्रम में रही तो जो कंद मूल उन्होंने खाएं वो ही भगवान राम ने खाएं। जमीन पर कुशा के बिस्तर पर माता सीता सोई थी तो राम भीं महल में उसी कुशा के बिस्तर पर सोए लोगों को लगता हैं कि राम महल में और मां जंगल में रही तो एक तरह से वनवास दोनों ने भोगा है। राम और सीता का प्रेम जैसा प्रेम कहीं नहीं है। जो एक दूसरे के पूरक है। त्याग और समर्पण अदभुद है। जो हम मानव के लिए संभव है ही नहीं।

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
   राम सीता सा जीवन जीना इतना आसान नहीं होता है। इनको मानते सब हैं पर उनके आदर्शो पर चलना कोई नहीं चाहते हैं।#ramsita

राम सीता सा जीवन जीना इतना आसान नहीं होता है। इनको मानते सब हैं पर उनके आदर्शो पर चलना कोई नहीं चाहते हैं।#ramsita #पौराणिककथा

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