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""मेरी मधुशाला"" _______________ देख तुम्हें

""मेरी मधुशाला""
 _______________
देख   तुम्हें   आतुर   हो   जाता,  ये  मेरा   मन  मतवाला।
एक   हाँथ  तस्वीर  तुम्हारी,  एक  हाँथ  मधु  का  प्याला।
जो  भी  निकला  घर  से  अपने,  मदिरा  पीने  के मन से।
डूब   गया   हर  पीने   वाला,   नयन   तुम्हारे   मधुशाला।

गर  न  मिले  मदिरा मुझको तो, दिल में जलती है ज्वाला।
भाल तिलक नहीं शोभित मुझको, कंठ न भाये जयमाला।
दुनिया  की  सब  खुशियाँ धूमिल, लगने लगती हैं मुझको।
मन  व्याकुल  हो  उठता  है जब, नजर न आए मधुशाला।

प्रभु  के ध्यान से पहले मुझको, ध्यान है आता मधुप्याला।
पंचामृत   की   जगह  मुझे  तुम,  दे   देना   थोड़ी   हाला।
अल्प  न  मुझको  लज्जा आये, पीकर जाऊं जब घर को।
मेरे  लिए  तो  मंदिर  मस्जिद,  सबकुछ  है यह मधुशाला।

है  कुछ को प्रिय काली मदिरा, कुछ को प्रिय नीली हाला।
जिसने  जो  मदिरा  मांगी,  वो   बात  न  साकी  ने  टाला।
भूल के साकी रंज हृदय  के, आज  पिलाता  महफ़िल में।
मन भरके खूब पियो आज सब, मुफ्त खुली है मधुशाला।
~~~
✍️ "पुष्कर सांकृत्यायन"

©Sankrityayan's Poetry मेरी मधुशाला

#MereKhayaal #HarivanshRaiBachchan #KumarVishwas #yqdidi #sankrityayanspoetry
""मेरी मधुशाला""
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देख   तुम्हें   आतुर   हो   जाता,  ये  मेरा   मन  मतवाला।
एक   हाँथ  तस्वीर  तुम्हारी,  एक  हाँथ  मधु  का  प्याला।
जो  भी  निकला  घर  से  अपने,  मदिरा  पीने  के मन से।
डूब   गया   हर  पीने   वाला,   नयन   तुम्हारे   मधुशाला।

गर  न  मिले  मदिरा मुझको तो, दिल में जलती है ज्वाला।
भाल तिलक नहीं शोभित मुझको, कंठ न भाये जयमाला।
दुनिया  की  सब  खुशियाँ धूमिल, लगने लगती हैं मुझको।
मन  व्याकुल  हो  उठता  है जब, नजर न आए मधुशाला।

प्रभु  के ध्यान से पहले मुझको, ध्यान है आता मधुप्याला।
पंचामृत   की   जगह  मुझे  तुम,  दे   देना   थोड़ी   हाला।
अल्प  न  मुझको  लज्जा आये, पीकर जाऊं जब घर को।
मेरे  लिए  तो  मंदिर  मस्जिद,  सबकुछ  है यह मधुशाला।

है  कुछ को प्रिय काली मदिरा, कुछ को प्रिय नीली हाला।
जिसने  जो  मदिरा  मांगी,  वो   बात  न  साकी  ने  टाला।
भूल के साकी रंज हृदय  के, आज  पिलाता  महफ़िल में।
मन भरके खूब पियो आज सब, मुफ्त खुली है मधुशाला।
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✍️ "पुष्कर सांकृत्यायन"

©Sankrityayan's Poetry मेरी मधुशाला

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