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#OpenPoetry ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते ना ई

#OpenPoetry ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते

ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते 


.......काश कोई धर्म ना होता 

.......काश कोई मजहब ना होता



ना अर्ध देते , ना स्नान होता 

ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता 

जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते

पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता 


ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता 

ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का फाटक होता 


.......काश कोई धर्म ना होता 

.......काश कोई मजहब ना होता ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते

ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते 


.......काश कोई धर्म ना होता 

.......काश कोई मजहब ना होता
#OpenPoetry ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते

ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते 


.......काश कोई धर्म ना होता 

.......काश कोई मजहब ना होता



ना अर्ध देते , ना स्नान होता 

ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता 

जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते

पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता 


ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता 

ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का फाटक होता 


.......काश कोई धर्म ना होता 

.......काश कोई मजहब ना होता ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते

ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते 


.......काश कोई धर्म ना होता 

.......काश कोई मजहब ना होता
manojdev1948

Manoj dev

New Creator

ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते  .......काश कोई धर्म ना होता  .......काश कोई मजहब ना होता #OpenPoetry