आफ़ताब-ए-इश्क़ (The sun of Love) *************************** ये जमीं फ़लक और ये आसमां जमीन हुआ जब उससे आफ़ताब-ए-इश्क़ मुझको हुआ..! मेरे ख्यालों का बागबां कुछ यूँ रौशन हुआ कागज़ पर उतरे जज़्बात फ़िर अल्फ़ाज़ बना..! चमक गई मैं फ़िर कुछ यूँ महताब बनकर उनकी रूह ने कुछ यूँ मेरे जिस्म को छुआ..! रूह पर खिले बेसुमार रंग- ए- फ़रह रंग-ए-इश्क़ का रंग कुछ यूँ मुझपे चढ़ा..! न दिल पे काबू रहा, न चेहरे पे हिज़ाब रहा बरसी बला-ए-इश्क़ की बारिश लाज शर्म का सारा पर्दा हटा..!! ©Rishnit❤️ आफ़ताब-ए-इश्क़ (The sun of Love) *************************** ये जमीं फ़लक और ये आसमां जमीन हुआ जब उससे आफ़ताब-ए-इश्क़ मुझको हुआ..! मेरे ख्यालों का बागबां कुछ यूँ रौशन हुआ कागज़ पर उतरे जज़्बात फ़िर अल्फ़ाज़ बना..!