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मैं मुतबिर नहीं किसी के आशियाने की🦅 मैं पंछी हू

 मैं मुतबिर नहीं किसी के आशियाने की🦅

मैं पंछी हूं अपने आकाश की🕊️

छोड़ दी वो जंजीरें परम्परा की 🌼

🤌जो याद दिलाए सालों साल मजबूरियों की 

उड़ने दो उस आकाश में है जहां 

किनारा ढूंढ लिया है 🏞️

छूने दो मुझे भी आकाश की गहराइयों को✍️

 डालो ना सारी जिम्मेदारियां नारियां यह बोली है

आजादी की हवा 🌀उमड  पड़ी है उन हवाओं की

 अब सही ना जाए दूरी अपने लक्ष्य की🏆

शीघ्र वो दिन हो जब पिंजरा टूटेगा ,🕊️उड़ चलेगा वह पंछी 

जो राह लगाए बैठा है उड़ने की वो  जल्दी में🌼

©Minakshi Opawat
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#poetry💛

#boat पंछी आकाश काthe girl's poetry💛 #Motivational #poetry🤗

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