"कोरोना के खिलाफ"(कविता) आस लगाए बैठा था कि अब कोरोना टल सकता है एक दुपहरी से मजदूरों का भोजन चल सकता है पर अभी भी लोगों के हालत को नाजुक बनाए बैठे हो? कितनो को डूबा चुके कितने को डुबाए बैठे हो तेरे इस काले कारनामे को हम सब मिल मिटाएंगे जो सपना बन बैठे हो तुम, तुम पर ही छड़ी चलायेंगे जो फसें है तेरे उलझन में उनका भी एक अपना घर है एक पहर में मन लगता नहीं कैसे कहे कि 8 पहर है जो लट्ठ लाचारी के मारे अपने दर्द छुपाएं बैठे है कर दे उनको भी रिहा क्योंकि उनका भी एक शहर है तू निर्जीव निर्मित श्रेणी का एक तुच्छ दरिंदा है मानव भी सजीव श्रेणी का एक नादान परिंदा है मत जला रोज -रोज हर घर में चिराग को तू नश्वर रूपी मुर्दा है,नर"रवि" मानव रूपी जिंदा है BY RAVI PRATAP PAL जलो मगर प्यार से