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माँ के आँचल की ममता टटोलती, आत्मीयता का दर्पण क्यो

माँ के आँचल की ममता टटोलती,
आत्मीयता का दर्पण क्यों दिखाती है,
बसंत की बाँहों में खिलती-खिलखिलाती
काल को बैसाखी क्यों दे जाती है,
रात कहाँ से तू आ जाती है।
लाल किरनों में गुदगुदाते बचपन को,
परछाईयों की दुनिया ही क्यों नज़र आती है,
परिंदों के आवाजों की सुरमई संगीत को,
सियारों की ध्वनियां क्यो छीन्न कर जाती है,
रात तू जल्दी क्यों आ जाती है।
भावनाओं के चंगुल से फिसलती नमी को,
हाथों के तपिस का वक्त्त तो देती,
मुंडेर पर बैठे चंदा की चाँदनी में,
कवि की कविता ससक्त तो होती,
अपनें आगोश में सुकून पहूंचाकर,
झिंझोड़ विलाप, तू रूठ क्यो जाती है,
रात तू जल्दी क्यों चली जाती है।

©Rashmi Ranjan #twistedooze
माँ के आँचल की ममता टटोलती,
आत्मीयता का दर्पण क्यों दिखाती है,
बसंत की बाँहों में खिलती-खिलखिलाती
काल को बैसाखी क्यों दे जाती है,
रात कहाँ से तू आ जाती है।
लाल किरनों में गुदगुदाते बचपन को,
परछाईयों की दुनिया ही क्यों नज़र आती है,
परिंदों के आवाजों की सुरमई संगीत को,
सियारों की ध्वनियां क्यो छीन्न कर जाती है,
रात तू जल्दी क्यों आ जाती है।
भावनाओं के चंगुल से फिसलती नमी को,
हाथों के तपिस का वक्त्त तो देती,
मुंडेर पर बैठे चंदा की चाँदनी में,
कवि की कविता ससक्त तो होती,
अपनें आगोश में सुकून पहूंचाकर,
झिंझोड़ विलाप, तू रूठ क्यो जाती है,
रात तू जल्दी क्यों चली जाती है।

©Rashmi Ranjan #twistedooze