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जीवन हमारा शब्दों से भरा है। अपने शब्द, महापुरूषों

जीवन हमारा शब्दों से भरा है।
अपने शब्द, महापुरूषों के शब्द, शास्त्रों के शब्द,
मीडिया और शिक्षा के शब्द,
समाज के शब्द।
कहीं ओर-छोर दिखाई नहीं पडता शब्द जाल का।
मार्ग मिले कैसे आगे जाने का।
हम कहते कुछ और हैं,
करते कुछ और हैं।
हर शब्द का अवसर के हिसाब से
अर्थ निकालते जाते हैं।
चलते जाते हैं।
हमारा अहंकार शब्दों के आगे जाने नहीं देता।
कहेगे विनम्रता, झुकेंगे भी, हां में हां भी भरेंगे,
किन्तु करने में अहंकार भी होगा,
रूखापन भी होगा और जरूरत लगी तो
टकराव भी हो जाएगा। :💕👨 Good morning ji ☕☕☕☕☕☕☕☕🍫🍫🍫🍫🍉🍉🍉🍉🍎🍧🍧🍧🍎🍎🍎🍎🍇🍇🐒☕🍫🙋🍀☘
:
विषय कोई भी हो, मनोदशा वही रहेगी। समर्पण तो बहुत दूर होगा। वैसे भी समर्पण जीवन का सबसे कठिन कार्य है।
जीवन के दो ही मुख्य पहलू हैं। एक है-लेने का भाव और दूसरा है-देने का भाव। देना ही जीवन का विस्तार कहलाता है और लेना संकुचन का भाव होता है। देना पुरूष का भाव, लेना प्रकृति का भाव। देना कठिन लगता है। लेने के लिए कुछ करना नहीं पडता। समर्पण का अर्थ है-सर्वस्व दे देना। स्वयं को भी दे देना। केवल लेने वाला ही बचे। देने वाला शेष ही न रहे। इसको तो सोच पाना भी कठिन है।
अहंकार आदमी को झुकने ही नहीं देता। यह तो खुद को ही बुद्धिमान मानता है। सामने वाले को मूर्ख साबित करने का प्रयास करता रहता है। झुकने के लिए विनयशीलता चाहिए। विनयशीलता के लिए आत्मबोध का होना जरूरी है। तब जाकर अहंकार का धरातल कुछ घटता है। अहंकार एक ऎसा शिखर है जिस पर चढने से धरती के सभी लोग छोटे दिखाई पडते हैं। अहंकारी को जब ठोकर लगती है, तब सीधा धरती पर ही गिरता है। तब उसे सब बराबरी के जान पडते हैं। शिखर पर पहुंचकर भी रहता अकेला ही है। साथ कौन दे!
:
क्रमशः------
जीवन हमारा शब्दों से भरा है।
अपने शब्द, महापुरूषों के शब्द, शास्त्रों के शब्द,
मीडिया और शिक्षा के शब्द,
समाज के शब्द।
कहीं ओर-छोर दिखाई नहीं पडता शब्द जाल का।
मार्ग मिले कैसे आगे जाने का।
हम कहते कुछ और हैं,
करते कुछ और हैं।
हर शब्द का अवसर के हिसाब से
अर्थ निकालते जाते हैं।
चलते जाते हैं।
हमारा अहंकार शब्दों के आगे जाने नहीं देता।
कहेगे विनम्रता, झुकेंगे भी, हां में हां भी भरेंगे,
किन्तु करने में अहंकार भी होगा,
रूखापन भी होगा और जरूरत लगी तो
टकराव भी हो जाएगा। :💕👨 Good morning ji ☕☕☕☕☕☕☕☕🍫🍫🍫🍫🍉🍉🍉🍉🍎🍧🍧🍧🍎🍎🍎🍎🍇🍇🐒☕🍫🙋🍀☘
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विषय कोई भी हो, मनोदशा वही रहेगी। समर्पण तो बहुत दूर होगा। वैसे भी समर्पण जीवन का सबसे कठिन कार्य है।
जीवन के दो ही मुख्य पहलू हैं। एक है-लेने का भाव और दूसरा है-देने का भाव। देना ही जीवन का विस्तार कहलाता है और लेना संकुचन का भाव होता है। देना पुरूष का भाव, लेना प्रकृति का भाव। देना कठिन लगता है। लेने के लिए कुछ करना नहीं पडता। समर्पण का अर्थ है-सर्वस्व दे देना। स्वयं को भी दे देना। केवल लेने वाला ही बचे। देने वाला शेष ही न रहे। इसको तो सोच पाना भी कठिन है।
अहंकार आदमी को झुकने ही नहीं देता। यह तो खुद को ही बुद्धिमान मानता है। सामने वाले को मूर्ख साबित करने का प्रयास करता रहता है। झुकने के लिए विनयशीलता चाहिए। विनयशीलता के लिए आत्मबोध का होना जरूरी है। तब जाकर अहंकार का धरातल कुछ घटता है। अहंकार एक ऎसा शिखर है जिस पर चढने से धरती के सभी लोग छोटे दिखाई पडते हैं। अहंकारी को जब ठोकर लगती है, तब सीधा धरती पर ही गिरता है। तब उसे सब बराबरी के जान पडते हैं। शिखर पर पहुंचकर भी रहता अकेला ही है। साथ कौन दे!
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क्रमशः------

:💕👨 Good morning ji ☕☕☕☕☕☕☕☕🍫🍫🍫🍫🍉🍉🍉🍉🍎🍧🍧🍧🍎🍎🍎🍎🍇🍇🐒☕🍫🙋🍀☘ : विषय कोई भी हो, मनोदशा वही रहेगी। समर्पण तो बहुत दूर होगा। वैसे भी समर्पण जीवन का सबसे कठिन कार्य है। जीवन के दो ही मुख्य पहलू हैं। एक है-लेने का भाव और दूसरा है-देने का भाव। देना ही जीवन का विस्तार कहलाता है और लेना संकुचन का भाव होता है। देना पुरूष का भाव, लेना प्रकृति का भाव। देना कठिन लगता है। लेने के लिए कुछ करना नहीं पडता। समर्पण का अर्थ है-सर्वस्व दे देना। स्वयं को भी दे देना। केवल लेने वाला ही बचे। देने वाला शेष ही न रहे। इसको तो सोच पाना भी कठिन है। अहंकार आदमी को झुकने ही नहीं देता। यह तो खुद को ही बुद्धिमान मानता है। सामने वाले को मूर्ख साबित करने का प्रयास करता रहता है। झुकने के लिए विनयशीलता चाहिए। विनयशीलता के लिए आत्मबोध का होना जरूरी है। तब जाकर अहंकार का धरातल कुछ घटता है। अहंकार एक ऎसा शिखर है जिस पर चढने से धरती के सभी लोग छोटे दिखाई पडते हैं। अहंकारी को जब ठोकर लगती है, तब सीधा धरती पर ही गिरता है। तब उसे सब बराबरी के जान पडते हैं। शिखर पर पहुंचकर भी रहता अकेला ही है। साथ कौन दे! : क्रमशः------