ममता सहसा ही, स्तब्ध हो कर उठी.. अपने दिवास्वप्न से, और जा बैठी आईने के सामने, अरसे बाद खुद से ही मिलने, नैनों के किवाड़ खोले, खुले बालों में..कल्पना का जूड़ा बाँधा, वो एहसासों की लाल बिंदिया, जो गिर गयी थी..करवटें बदलते.. तकिए के गिलाफ़ पर चिपकी मिली, उसने उसे चुटकी से उठाया, और माथे पर फिर, करीने से सजाकर श्रृंगार किया, जैसे वो उसके सर का ताज बन गया, लाज के दुपट्टे को कांधे पर रखा, और निहारने लगी, दुपट्टे का कोना.. जो शायद भीग गया था नींद में बही, भावनाओं की नदियों से, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे_है.. स्त्रियाँ अक्सर शून्य रहती हैं... जो सामाजिक रूढियों और पुरूषवादी समाज में..आगे और न्यून हो जाती हैं..कर्तव्य निभाती बस वस्तु की भाँति.. यहाँ ममता से तात्पर्य "माँ" है #सफर_शून्य_से_न्यून_तक