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न पतझड़ है, न फूले पलास हैं... न लू के थपेड़े हैं, न

न पतझड़ है, न फूले पलास हैं...
न लू के थपेड़े हैं, न झड़ी लगाती बरसात है...
मौसम भी आलसी हुआ या ये प्रकृति का निर्वात है..
****************
ठूठी शाख़ों पर बैठ पंछी कलरव कर रहे हैं..
चिलचिलाती धूप में मेघ अलमस्त बरस रहे हैं..
मौसम बागी हो रहा है या आपस में संतुलन कर रहे हैं..
***************
इस पर.. मन का ऊहापोह..
कैद है या स्वतंत्र है,
ईश्वरीय प्रकोप या धसकता प्रजातंत्र है,
कहीं अवसाद है , कहीं अवसाद पर लिखने की होड़ है,
वह अँधेरे कमरे में छोड़े सब मोह है,
हर मन अंतर्द्वंद करता, युद्व-अमन के तर्क रखता,
डरता योद्धा के कवच में,
किसी को बचा पाता, 
किसी को न बचा पाने का अफसोस करता..
खुद की थाली देख खैर मनाता,
अपनी आती-जाती साँसों में ध्यान लगाता
अकस्मात, सीमा पर टूटती साँसों का योग लगाता
या, अस्पताल में टूटने की सीमा तक पहुंची साँसों तक पहुँच जाता..

मन का ऊहापोह और रोज बदलता मौसम,
दोनों बेमन से.. #मनःस्थिति #वर्तमानपरिदृश्य #मौसम #बेमौसम #बेमन #yqdidi
न पतझड़ है, न फूले पलास हैं...
न लू के थपेड़े हैं, न झड़ी लगाती बरसात है...
मौसम भी आलसी हुआ या ये प्रकृति का निर्वात है..
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ठूठी शाख़ों पर बैठ पंछी कलरव कर रहे हैं..
चिलचिलाती धूप में मेघ अलमस्त बरस रहे हैं..
मौसम बागी हो रहा है या आपस में संतुलन कर रहे हैं..
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इस पर.. मन का ऊहापोह..
कैद है या स्वतंत्र है,
ईश्वरीय प्रकोप या धसकता प्रजातंत्र है,
कहीं अवसाद है , कहीं अवसाद पर लिखने की होड़ है,
वह अँधेरे कमरे में छोड़े सब मोह है,
हर मन अंतर्द्वंद करता, युद्व-अमन के तर्क रखता,
डरता योद्धा के कवच में,
किसी को बचा पाता, 
किसी को न बचा पाने का अफसोस करता..
खुद की थाली देख खैर मनाता,
अपनी आती-जाती साँसों में ध्यान लगाता
अकस्मात, सीमा पर टूटती साँसों का योग लगाता
या, अस्पताल में टूटने की सीमा तक पहुंची साँसों तक पहुँच जाता..

मन का ऊहापोह और रोज बदलता मौसम,
दोनों बेमन से.. #मनःस्थिति #वर्तमानपरिदृश्य #मौसम #बेमौसम #बेमन #yqdidi
vibhakatare3699

Vibha Katare

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