भाई-भाई में फ़ितने डालना,ये बात अच्छी नही लगती अरे मियाँ,इतनी हरामखोरियाँ,अब हमें अच्छी नही लगती खुशमिजाजी के लिए,तवायफ के साथ लगे हो अब उस हरियाली में,अब घर की बीबियाँ,अच्छी नही लगती धामो,मज़ारों पर चादरे बड़ा शौक से चढ़ाते हो तुम लेकिन माँ की फटी साड़ियां,तुम्हें अब भी नही दिखती तुम्हारी चमड़िया भी शायद,एक ही जैसी है सब मे पर साहब,ये जात-पात में मतभेदीयां,अच्छी नही लगती इस दौर में अब अपने ही,हराने में लगे है "शाहिद" कोई अपना जीते ले,ये क़ामयाबीयां,उन्हें अच्छी नही लगती ©Muradi Shahid अब घर की बीबियाँ अच्छी नही लगती #muradishahid #muradishahidpoetry #nojohindi #nojotopoetry #delusion