#evening हूई अब नज़्म भी ख़ूनी सियासत की नूरानी में
गाँधी के भोलापन से खद्दर लाल है होती
उठो अब बज़्म से वीरों,धरा है खून की प्यासी
लगा दो आग नग्मों में,समां की हर साख है रोती
चमन के अंधेरों को मिटा दो रक्त से पथचर
समंदर लाल भी हो तो क्या इल्ज़ाम आएगा
मज़हब मौज से दरख़्त के साए में जो जीतें है