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तुम मुझे ख़ून दो , मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा । मगर

तुम मुझे ख़ून दो ,
मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।
मगर हमने क्या किया ?
हम अपनो का ही, ख़ून बहाते रह गए ।
क़ाश यह ख़ून , आज़ादी के संघर्ष मे बहता ,
तो परिणाम कुछ और ही होते ।
आज़ादी की लड़ाई के नाम पर,
कुछ लोग , 
यूँ इतनी क़ीमत वसूल नहीं कर रहे होते। महात्मा गाँधी ने सुभाषचंद्र बोस को देशभक्तों का देशभक्त कहा। यह बहुत बड़ी उपाधि है। 

आज़ादी के इस महानायक का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ। नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाषचंद्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आज़ाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 

18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। 

सुभाष जी की नेतृत्व क्षमता का आज हर कोई क़ायल है। इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने एक सेना का निर्माण करके दिखा दिया कि यदि आपका उद्देश्य महान है और उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आप में सर्वस्व न्योछावर करने का जज़्बा है तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
तुम मुझे ख़ून दो ,
मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।
मगर हमने क्या किया ?
हम अपनो का ही, ख़ून बहाते रह गए ।
क़ाश यह ख़ून , आज़ादी के संघर्ष मे बहता ,
तो परिणाम कुछ और ही होते ।
आज़ादी की लड़ाई के नाम पर,
कुछ लोग , 
यूँ इतनी क़ीमत वसूल नहीं कर रहे होते। महात्मा गाँधी ने सुभाषचंद्र बोस को देशभक्तों का देशभक्त कहा। यह बहुत बड़ी उपाधि है। 

आज़ादी के इस महानायक का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ। नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाषचंद्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आज़ाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 

18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। 

सुभाष जी की नेतृत्व क्षमता का आज हर कोई क़ायल है। इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने एक सेना का निर्माण करके दिखा दिया कि यदि आपका उद्देश्य महान है और उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आप में सर्वस्व न्योछावर करने का जज़्बा है तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है।