आया वसंत उर आंगन में प्रति पल पल पीत हुई धरती । ले स्नेह निमंत्रण सूरज की मृदु किरणे नभ से हैं झरती ।। तितलियों का कैसा गुंजन ये ... कोलाहल सा अमराई में । ऋतु बदल रही चोली चूनर सब व्याधि त्रास को हैं हरती ।। ©हरीश भट्ट #वसंत