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माना गम है चाहत का उर्म भर के लियें कुछ तो मिले फु

माना गम है चाहत का उर्म भर के लियें
कुछ तो मिले फुर्सत दम भर के लियें
जब घर मे मुफलिसी का कहर हो यारों
तरस ही जाता है आदमी कफन के लियें
वो चोखट वो कूंचे वो गलियारे नहीं अब
अतीत ही बचा है फकत भ्रम के लियें
तुझे क्या मालूम दौर ऐ इश्क़ की दास्ताँ
भटके न कहाँ कहाँ हम सनम के लियें

मारुफ आलम गजल/शायरी
माना गम है चाहत का उर्म भर के लियें
कुछ तो मिले फुर्सत दम भर के लियें
जब घर मे मुफलिसी का कहर हो यारों
तरस ही जाता है आदमी कफन के लियें
वो चोखट वो कूंचे वो गलियारे नहीं अब
अतीत ही बचा है फकत भ्रम के लियें
तुझे क्या मालूम दौर ऐ इश्क़ की दास्ताँ
भटके न कहाँ कहाँ हम सनम के लियें

मारुफ आलम गजल/शायरी
maroofhasan2421

Maroof alam

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