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चाँद का टुकड़ा वैसे तो कोई लूटेरी ना थी मगर , अपनी

चाँद का टुकड़ा वैसे तो कोई लूटेरी ना थी मगर , अपनी नशीली आंखों से हरदम ठगती थी

एक मुझे पाने की चाह में उन दिनों , वो भी रातों में जगती थी

सच कहुँ तो मेरी ख़ातिर धरती पर एक चाँद का टुकड़ा थी वो

जब-जब देखा करता एक झलक उसकी , फिर पूरी दुनिया ही हसीन लगती थी


                                                सारांश...जिंदगी का
चाँद का टुकड़ा वैसे तो कोई लूटेरी ना थी मगर , अपनी नशीली आंखों से हरदम ठगती थी

एक मुझे पाने की चाह में उन दिनों , वो भी रातों में जगती थी

सच कहुँ तो मेरी ख़ातिर धरती पर एक चाँद का टुकड़ा थी वो

जब-जब देखा करता एक झलक उसकी , फिर पूरी दुनिया ही हसीन लगती थी


                                                सारांश...जिंदगी का