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जिम्मेदारियां और फर्ज निभाते-निभाते, हम समझदार हो

जिम्मेदारियां और फर्ज निभाते-निभाते, हम समझदार हो गए।
अपनों की खुशियों के लिए जीते-जीते, अपनी खुशियां भूल गए।

कभी-कभी समझदारी नासमझ सी भी, करने को जी चाहता है।
जानते हैं सब कुछ पर फिर भी, अनजान बनने को जी चाहता है।

हम चाहे जितना भी संभल के चले, दिल से नादानियां हो ही जाती है।
दिल गर बच्चा है तो नादानियां उम्र के, किसी भी मोड़ पर आ जाती हैं।



 🎀 Challenge-405 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
जिम्मेदारियां और फर्ज निभाते-निभाते, हम समझदार हो गए।
अपनों की खुशियों के लिए जीते-जीते, अपनी खुशियां भूल गए।

कभी-कभी समझदारी नासमझ सी भी, करने को जी चाहता है।
जानते हैं सब कुछ पर फिर भी, अनजान बनने को जी चाहता है।

हम चाहे जितना भी संभल के चले, दिल से नादानियां हो ही जाती है।
दिल गर बच्चा है तो नादानियां उम्र के, किसी भी मोड़ पर आ जाती हैं।



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