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दफ़्न हैं ज़ेहन में के कलम कभी उठी तो कागज़ बदगुमां ह

दफ़्न हैं ज़ेहन में के कलम कभी उठी तो कागज़ बदगुमां हो गया
है तो ऐसे कई राज जो लोग अब समझते नहीं
ग़ज़ल में शामिल य्य कविता भी 
क़त्ल करती है ये पारदर्शिता भी
ये वो लोग चुने हुए मेरे इस समाज के अबोध से हैं
जिन्हें फर्क नही आता है कविता का और कहते है 
साहित्य ही रचना का सार है और कविता प्राण है
साधारण सी बातों को चले है है ताज अब पहनाने
किताब में में अब वो पुराने ज़ोर और वजन कहाँ
सीधी सी बात को इनाम कर चले हैं, रचना का सार है कहाँ
अब लिखे भी तो किसलिए ये कौन पूछे अब माधव
यहां गहराइयों ओर परायों का सा साथ है
अब न कहानी सुनने को बची है ना सुनाने को
जब बाजार ही ये बिका हुआ सा लगता है
अब कई ऐसे साज़ हैं
अब कई ऐसे राज़ हैं एक ख़ूबसूरत #collab Aesthetic Thoughts की ओर से।
#कईऐसेराज़  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
दफ़्न हैं ज़ेहन में के कलम कभी उठी तो कागज़ बदगुमां हो गया
है तो ऐसे कई राज जो लोग अब समझते नहीं
ग़ज़ल में शामिल य्य कविता भी 
क़त्ल करती है ये पारदर्शिता भी
ये वो लोग चुने हुए मेरे इस समाज के अबोध से हैं
जिन्हें फर्क नही आता है कविता का और कहते है 
साहित्य ही रचना का सार है और कविता प्राण है
साधारण सी बातों को चले है है ताज अब पहनाने
किताब में में अब वो पुराने ज़ोर और वजन कहाँ
सीधी सी बात को इनाम कर चले हैं, रचना का सार है कहाँ
अब लिखे भी तो किसलिए ये कौन पूछे अब माधव
यहां गहराइयों ओर परायों का सा साथ है
अब न कहानी सुनने को बची है ना सुनाने को
जब बाजार ही ये बिका हुआ सा लगता है
अब कई ऐसे साज़ हैं
अब कई ऐसे राज़ हैं एक ख़ूबसूरत #collab Aesthetic Thoughts की ओर से।
#कईऐसेराज़  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
madhav1592369316404

Madhav Jha

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