एक नगर ऐसा बस जाए जिसमें नफ़रत कहीं न हो आपस में धोखा करने की, ज़ुल्म की ताक़त कहीं न हो, उसके मकीं हों और तरह के, मस्कन और तरह के हों उसकी हवाएं और तरह की , गुलशन और तरह के हों... -Muneer Niyazi ©Srijit Srivastava #muneerniazi