जीवन सस्ता हो गया,बढ़े धरा के दाम, इंच - इंच पर होने लगा भाइयों में संग्राम, वफ़ा रही न सोनी की,न महिवाल सी प्रीत, झूठी है सब यारी ,बनते नहीं अब मीत, पानी आंखन का मरा, मरी शर्म है लाज, बड़े -बूढे रोवत लागे , मेड़ का है अब राज, नई सदी है ये ,या है दर्द भरी सौगात, प्रेम भाव टूटत लागत, छूट गये रीति-रिवाज।। @@नयी सदी@@