त्योहार है रविवार है, य कर्फ्यू वाला बाजार है, चाहे तबियत ठीक नही,घर पे कोई बिमार है। धर्म के दंगे य फिर सड़क पर कोई हादसा... कोरोना की बिमारी य फिर हल्का बुखार है, बिना पूछे धर्म डॉक्टर इलाज को तैयार है ।। मौत का अहसास लिये लोग अस्पताल मे पड़े है, जिससे से डर गये लोग ऊसके सामने डॉ.ही खड़े है। न वो डरेंगे न वो झुकेंगे न वो लौट के घर जायेंगे... जब तक है अंतिम सांस मानवता के काम आयेंगे ।। हाथ उठे उनपर फिर भी हाथ उन्होंने बढ़ाया है, आँख हाथ सर पैर न जाने क्या-क्या टूटा उनका, इसी समाज के कुछ जाहिल ने उन पर भी थूका। पर वो सब कुछ भूल कर उन्हे गले से लगाया है, तालियों थालियों की अवाज मे सारी बाते दब जायेगी, बिपदा टल जायेगी तब उन्हे औकात दिखाई जायेगी। इन्फेक्शन मे न जाने कितने स्वास्थ्यकर्मी ने जान गवाई है, किसी भी को इज्जत य फिर शहीद क तमगा न मिला। न ही किसी अदालत मे सुनवाई है....... भूख है प्यास है, इतने व्यवधान है, ये सब झेलते, ये भी तो इंसान है। सब बुझ गया तब, भी ये जल रहे है, दुनिया थम गई ,पर ये चल रहे है।। #अमित# i salute all dr. and medical staff