तू रातों की रानी और दिन की सहेली है, सुलझे जो मुझसे, वो तू पहेली है! मैं मुफ़लिश से टूटा हुआ एक घर सा, तू खानदानी कुनबे की हवेली है। मैं एक दरिया का खोया किनारा हूँ, मैं खुशबू हूँ जिसकी तू वो चमेली है। मैं खंडहर हूँ बिल्कुल टूटा पुराना सा, इमारत शहर की तू नई नवेली है। ©Akhil Arya #Light #Poetry #poem #Gajal2 #gazal #Nojoto #Trending #no1