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तेरी चाहतों का असर, मेरी रूह पे चढ़ गया है..! धीर

 तेरी चाहतों का असर,
मेरी रूह पे चढ़ गया है..!

धीरे धीरे इश्क़ मेरा,
यूँ आगे बढ़ गया है..!

जब से तुम्हें देखा,
दिल इस ज़िद्द पे अड़ गया है..!

तुझे बनाना हमसफ़र अपना,
ख़ुद के वज़ूद से लड़ गया है..!

नैनों की भाषा तेरी अभिलाषा,
मेरा मन पढ़ गया है..!

अबोध बालक जैसे तेरी,
मासूमियत के पीछे पड़ गया है..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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