Maa निःशब्द मृत्तिका-सी कभी नर्म कभी सख्त साँचे में खुद को ढालकर, सभी को ऊर्जस्वित करती है माँ | कभी जल-सी तरलता, कभी विटप-सी प्राणमयता लिये, खुद की ख्वाहिशों से अनजान बनकर सभी को ख़ुश रखती है माँ | जिम्मेदारियों की शिकन कभी दिखे ना मस्तक पर, हँसकर हर पल को गुज़ार देती है माँ | तानों रूपी कंटकों से तिरस्कृत हर दिन विष का घूंट क्यों पीना पड़ता है उसे, ज़ब हर पल अपना सबके लिये जीती है माँ| ओहदा माँ का इस ज़हान में सबसे पृथक होकर भी होता है ऐसा क्यों, ज़ब हर बच्चे के लिये जन्नत होती है उसकी माँ | ✍️✍️✍️डॉ गरिमा त्यागी मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.........