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मैं नही जानती क्या हो रहा था मगर कहीं-न-कहीं वो दि

मैं नही जानती क्या हो रहा था
मगर कहीं-न-कहीं वो दिल से जुदा हो रहा था।

लाख समझाया मैने इस दिल को मगर
यही उसकी आदतों से खुद को अलविदा कह रहा था।

मैं उसकी सब बातें मानती जाती थी
बस यही भूल हुई की! वह खेल रहा था।

कई मौके मिले दिल को संभलने के मगर
ये दिल उसकी कैद से  रिहा नही हो रहा था ।

मैं नही जानती क्या हो रहा था
मगर कही-न-कही वो दिल से जुदा हो रहा था।

©Richa Mishra
  मैं नही जानती क्या हो रहा था 🥺💔

मैं नही जानती क्या हो रहा था 🥺💔 #Shayari

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