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कानून अंधा है हर गलत काम करने वाला ; आदमी गं

कानून अंधा है

हर  गलत  काम  करने  वाला ; आदमी  गंदा है

जो  लूटे , आबरुँ   बहिनों   की ;  वो  दरीन्दा है

फंदा है इर इक गले में लटकने वाला फाँसी का

फिर  भी  कहते  हो  तुम  की ; कानून  अंधा है

कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद कानून अंधा है....कीर्तिप्रद
कानून अंधा है

हर  गलत  काम  करने  वाला ; आदमी  गंदा है

जो  लूटे , आबरुँ   बहिनों   की ;  वो  दरीन्दा है

फंदा है इर इक गले में लटकने वाला फाँसी का

फिर  भी  कहते  हो  तुम  की ; कानून  अंधा है

कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद कानून अंधा है....कीर्तिप्रद