संदर्भ: एक चिंतित आदमी घर से दूर, दूसरे शहर में फंसा लॉकडाउन के बीच बेबसी और नाकामी में डूबा आशा की किरण पाता है......
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बेबसी थी अजीब...कि रेत पर चलने लगा
प्यास बुझाने को कहो अथाह सागर मिला,
आखिरी बूंद तक मीठी नदी का सूख गया
इस कदर तक़दीर से दरबदर ठुकराया गया
कि दर्द दिल पर सुराग़ कर के चल दिया!
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