उन आँखों से, ईन आँखों तक, आँखों आँखों में बातें होने लगी हैं | रातों को महबूब की यादों में जागती हैं ये आँखें, और दिन में उसकी याद में रोने लगी हैं | महबूब को देखने को तरसे, ये आँखे महबूब की कहलाती हैं, अपना अस्तित्व खोने लगी हैं | उन आँखों से, ईन आँखों तक, आँखों आँखों में बातें होने लगी हैं | आंखें ✍️✍️