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बारिश और बचपन की यादें बारिश की नन्हीं नन्हीं बूं

बारिश और बचपन की यादें

बारिश की नन्हीं नन्हीं बूंदें
फिर से आज़ चेहरे पर गिरकर
यादें बचपन की ताज़ी कर गयीं हैं
बाहें फैलाकर बारिश की बूंदों में
आकाश की ओर निहारते हुए
बेसुध होकर क़ईं क्षणों तक खड़ा रहना
पुरानी कापियों या अखबार के पन्नों से
कागज़ की कश्तियां बनाकर
बारिश के बहते पानी की सतह पर छोड़ना
रिमझिम फुहारों में नृत्य करते मयूर
कितने ही खूबसूरत लगते थे
खुशनुमा मौसम में क्या बच्चे क्या बूढ़े
सब के सब आनंदित होते थे
एक खूबसूरत सा एहसास और
चहुं ओर हरियाली के दिलकश नजारे
लगते थे अत्यंत ही मनमोहक
और मन को अति प्यारे
सोंधी सोंधी खुशबू मिट्टी की
मन को बहुत भाती थी
गरमागरम चाय और पकौड़े
दिल को बहुत ही लुभाती थी
बारिश की ये नन्हीं नन्हीं बूंदें
आज़ भी मिट्टी से मिला करती हैं
पर, मालूम नहीं क्यों मिट्टी की खुशबू
शायद कहीं गुम सी हो गई हैं
वो मयूर और कश्तियां भी
कहीं ओझल हो गई हैं
बारिश में भींगने की बात 
शायद अब पुरानी हो गई
क्योंकि जिंदगी हमारी घड़ी की सूइयों में
न जाने कहीं खो गई ।

राजीव भारती
पटना बिहार (गृह नगर)

©Rajiv Ranjan Verma #कविता
# राजीव भारती

#rain
बारिश और बचपन की यादें

बारिश की नन्हीं नन्हीं बूंदें
फिर से आज़ चेहरे पर गिरकर
यादें बचपन की ताज़ी कर गयीं हैं
बाहें फैलाकर बारिश की बूंदों में
आकाश की ओर निहारते हुए
बेसुध होकर क़ईं क्षणों तक खड़ा रहना
पुरानी कापियों या अखबार के पन्नों से
कागज़ की कश्तियां बनाकर
बारिश के बहते पानी की सतह पर छोड़ना
रिमझिम फुहारों में नृत्य करते मयूर
कितने ही खूबसूरत लगते थे
खुशनुमा मौसम में क्या बच्चे क्या बूढ़े
सब के सब आनंदित होते थे
एक खूबसूरत सा एहसास और
चहुं ओर हरियाली के दिलकश नजारे
लगते थे अत्यंत ही मनमोहक
और मन को अति प्यारे
सोंधी सोंधी खुशबू मिट्टी की
मन को बहुत भाती थी
गरमागरम चाय और पकौड़े
दिल को बहुत ही लुभाती थी
बारिश की ये नन्हीं नन्हीं बूंदें
आज़ भी मिट्टी से मिला करती हैं
पर, मालूम नहीं क्यों मिट्टी की खुशबू
शायद कहीं गुम सी हो गई हैं
वो मयूर और कश्तियां भी
कहीं ओझल हो गई हैं
बारिश में भींगने की बात 
शायद अब पुरानी हो गई
क्योंकि जिंदगी हमारी घड़ी की सूइयों में
न जाने कहीं खो गई ।

राजीव भारती
पटना बिहार (गृह नगर)

©Rajiv Ranjan Verma #कविता
# राजीव भारती

#rain

#कविता # राजीव भारती #rain