"हाँ हैं आजाद, देखो ना रहने को घर है ये आसमान सोने को ज़मीन, खाने को दो वक़्त कि अपने ज़मीन से ही उपजायी रोटी खेलने को अपनी धरती कि मिट्टी, और क्या चाहिए, कोई फिक्र नहीं है दुनियादारी कि,आँखो में चमक है, बाजुओं में ताकत, होंठों पे मुस्कान लिए हम बाँहें फैलाए करते हैं ख़ुदा कि इबादत" #hindiwriter #aazaadi #khuda#dharti #ibaadat#muskaan #hauslaa #Nojotohindi#NojotoPoet