प्रकृति की सुन्दरता (कविता) अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने। स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने। पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने। स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने। चहुँओर प्रकृति में बसंत बहार, छाई है जैसे बदन पे गहने। मन को मोहे, दिल को छू ले, तारीफ में क्या कहने। पंछी करते है शोर मधुर, संगीत लगे कानों में बहने। मन भी जैसे झूम उठा हो, तारीफ में क्या कहने। स्वच्छ चाँदनी अम्बर से बिखरी, धरती लगी ये कहने। शीतल छाया, कोमल रोशनी, तारीफ में या कहने। प्रकृति की सुन्दरता (कविता) Pic Credit :- Pinterest अविरल बहती जल की धारा, कल कल करते झरने। स्वच्छंद नदी का अमृत जल है, तारीफ में क्या कहने। पौधों पे हैं पुष्प सुसज्जित, जैसे हीरों का ताज हो पहने। स्वच्छंद हवा का स्रोत है निर्मल, तारीफ में क्या कहने।