घाट घाट का पानी पी के आया हूं । घास फूस के छप्पर सा मैं छाया हूं। जो सबको कंपा दूं ऐसा प्यारा झटका हूं। ना जाने क्यों लोगों की आंखो में मैं खटका हूं। बहा के लहू कांटो में मैं चल सकता हू। सूखी डाली सा पेंडो में मैं लटका हूं। जो लहू बहाते उनको समझाने आया हूं। घाट घाट का पानी पी के आया हूं ।। घाट घाट का पानी